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एक और टुटा ख्वाब

एक और टुटा ख्वाब बस  कसक सी रह गयी
जाते जाते उमीदे इतना  मुस्करा के कह गयी
अब तो उनकी रुसवाई पे एतबार करना सिख लो
प्यार जो हुआ है अब,तो  दर्द से भी  प्यार करना सिख लो
                                      पुनीत कुमार राय

२१ वी सदी के गाधी

२१ वी सदी  के गाधी
                                                           पुनीत कुमार राय


उजड़े हुए कुछ इट पत्थरो   के
                          पास खड़े कुछ लोगो में
सफ़ेद अस्टिन वाले बड़े साहब बोले
                             चले आते है साले
हमें परेशान  करने
                         मरते भी नहीं


पाश कालोनी के बदबूदार नालो
                       का सुन्दरीकरण चल रहा था
कुछ कपड़ो की गठरिया राखी थी
                   कुछ इट पत्थरो  में राख सा भी था
शायद किसी का घर था और चुल्हा भी था
                घर चूल्हों  के साथ  कुछ सपने थे




जो कोसो दूर से खीच लाये थे
               दो जून की रोटी की तलाश में
यहाँ भी वही भूख थी
          पर ख़ुशी थी क्यों की हाथो में काम था


सर पर छपर तो थी ही
          लू के थपेड़ो  से बचने को
कपडे की ही सही दीवार भी थी
            झट से सब छीन जगा


और दोपाया कुत्तो का एक जोड़ा
  चद मिमियाते पिल्लो के साथ
गट्ठर  उठाये   आगे खड़ा था
   देख रहा था डब डबी आँखों से
शहर का सुंदरीकरन
      

तीन देश के भविष्य भी थे हैरान
परेशान तो बड़े साहब भी थे और
         ए सी के  तले  गद्दीदार कुसरी पर
रखी वो नौकरशाह सफ़ेद तौलिया भी
        जो आज गन्दी होने वाली थी


       उसे भी साहब की तरह अपना काम
        न करने की आदत जो पड गयी थी
पसीने से कोसो दूर
       मुकुट की तरह सजी विदेशी तौलिया
     अब डर  था उसे, घुस की कमाई
       उसे कूड़े दान में न फिकवा दे


क्यों की उसने और
    चमकते हुवे टेबल ने देखा है
सुंघा है नीचे से आती
    हरी पत्तियो की सौंदी महक


और देखा है
      दीवार पर लटके उस हाड माश के मशीहा
के तरह मुस्कराते फोटो की बहार
   कड़क दार काली कमाए के हरे नोट


इधर दो पाया फिर समेट कर चद
 चिथड़े कपड़ो के ,जले बर्तन
सोच रहा था क्या मिला यहाँ
    वो अधुरे सपने मुठी भर अनाज 


फिर समझा कर खुद को
  पापी पेट की दुहाइ देकर
चला किसी बदबूदार
   नाली को  सुन्दर कर घर बनाने में

जहा बड़े साहब की पहूच न हो
 २१ वी  सदी के गाँधी वादी
अहिनसक  ,दंतहीन दो पाया कुत्ते की तरह
   जो चाहकर भी झपट नही  सकते!
और मजबूर है जिंदा रहने को!

अक्षर आपकी मर्ज़ी के

इस भीड़ में मेरा भी एक पता है

मेरी फ़ोटो
पूर्वान्चल : मऊ, उत्तर प्रदेश, India
कभी एक ख्वाब देखा था हम एक बने ,खुद को जाने पहचाने ,सुख दुःख में भागीदार बने|सब को साथ रखने का कुछ प्रयास किया जो असफल रहा कुछ प्रयास और करूगा। मीडिया अध्ययन से प्राथमिक शिक्षा के उत्थान के प्रयास का सफर। विश्वास है कि :खुद मे ही खुदा है

HOLI..........

एक बार देखो....बार बार देखो


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