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कसम राम की खायेंगे …………मगर क्यों ?

कसम राम की   खायेंगे …………मगर   क्यों  ?

                                                                       पुनीत कुमार राय
वर्षो लग  गए  थे  मुझे  ये  समझने  में  की  ज़िन्दगी  का  मतलब  है  विकास . यानि  पूर्व  की  अवस्था  से  नई  में परिवर्तन .अब  महसूस  होता  है  की  रूसो   ने  ठीक  ही  कहा  था  हम  चारो  तरफ  से  बन्धनों  से  बंधे  है .कभी   विकास  के  नाम  पार  तो  कभी   विकास  की  राजनीत  में .मानव  होना  इनता  बड़ा   वरदान  नई  रह  गया  की , हम  इस  पर  फक्र  करे .खाश कर  अपनी  जान    से  प्यारे  हिन्दुअस्तान  तो  बिलकुल  भी  नहीं .विकास  के  नाम   पर  हमें   सिख  दंगो   को  भुला  देना  चाहिए  .बाबरी  मस्जिद  सॉरी   ढाचा  तो   हम  भुला  ही  चुके  है ,गुजरात भूलने  की  पूरी  कोसिस  कर  रहे  है  .पर  क्या   करे  जनाब  जलती  हुई   ट्रेन   और   तिलक   तलवार   धरी  लोग    ख्वाबो   में   भी  डराने    जाते  है .


इतिहास  को  भूल   कर  लग  रहा  था  की  इस  globlized सभ्यता  में   हम   धर्म  जाति  से  ऊपर  उठा  गएँ  है , पर  नहीं  . हम  तो  लड़ते  रहेंगे  मदिर  मस्जिद  के   नाम  पर .सायद  इस  लिए  की   हम   लड़ाकू  जाती  के  है ............अरे  आर्य  हो   हो  पता   करो  हिंदुस्तान  कैसे  तुम्हारा  हुवा ,अगर  नमाजी   हो  तो   मुस्लिम   आक्रमण    के   साथ   ही  आये होगे  जानलो , क्रिस्टियन  हो  तो  पाक  साफ   नहीं   तुम्हारे  भाई   बंधू  तो  माशा   अल्लाह   है ………. सिख  है  तो  ..सवा   लाख  से  एक .........याद  है   . हमारे  हाड़  माश में  हिंसा  और   नफरत  भरी  है .

 १९९२  में  क्या  हुवा  था  अयोद्या में  याद   नहीं  रखना   चाहता   था .तब  मैं  6  साल  का  था . नहीं   पता  है   कौन   सा   मंदिर  बनवाना   है   मंदिर  और  मस्जिद   क्या  होती  है   पर   तब  से  एक  नारा   याद   है  कसम   राम   की  खाएँगे  हम   मंदिर  वही  बनवायेंगे  और  “ कल्याण  सिंह  कल्याण   करो  मंदिर  का   निर्माण  करो ” मेरे  बाद  की   पीडिया  जो   भूल   चुकी  थी  की बाबरी   ढाचा   गिरने  से  राम  मंदिर  बनाने  तक  कितने  अब्दुल्ला  और  राम   मोहन   मारे  गए , धर्म   का  उन्माद   क्या   होता  है ,  कैसे   खून  का  लाल  रंग  रज  तिलक  का   आनंद  देता  है , शायद   अब  लिब्राहन  की  रिपोर्ट  पर  चाल  रही  चर्चा  उन  जख्मो   को  कुरेद  कर फिर  से   नासूर  बना  देने  को  तैयार   है  .

हो  भी  क्यों  न ,  कांग्रेस  को  UP जीतना  है ,BJP  को   राम  मंदिर  का  जूनून  भुना   कर  सत्ता  हथियानि  है ,और  SP  को लोहिया  के  समाजवाद  के  नाम पर  मुस्लिम  राजनीत  से  सीटें  बढ़नी  है .पर  हमें  क्या  मिला ???

 क्या  राम  को वो  जगह  चाहेये  भी ?
क्या  पुरे  देश  में  फइले  १९९२  के  दंगो   में  खून  हमारा  नहीं  बहा  ?
मिला  क्या …………
राम  को  मन्दिर …नहीं  उन्हें  चाहिए  भी  नहीं 
बाबरी  मस्जिद  –   में  अजान  …..असंभव 
फीर  क्या  मिला ……
मिला  पुरे  देश  में  हजारो  मंदिर  मस्जिद  तोड़े  गए ……..
  विधवाओ  को  उनके  सुहाग  की  लाश  न  देखने  को  मिली .                                    

और  १७  साल  बाद उन  वोट  के   सौदागर  को   राजनीत  करने  का  एक    नया   मुद्दा   मिला  .

खैर   हम   तो   आदि  है  कत्पुटली  का  डांस   करने  के.   जिमेदार  हम  सब  है  चुनाव पर  अपनी  जाती  के  उमीदवार  को  वोट  तो  डाला ,  क्या  सच  मुच  वो  आपके  नेता  कहलाने  के  लायक  है  ?



PUNEET KUMAR RAI
09990307154

अक्षर आपकी मर्ज़ी के

इस भीड़ में मेरा भी एक पता है

मेरी फ़ोटो
पूर्वान्चल : मऊ, उत्तर प्रदेश, India
कभी एक ख्वाब देखा था हम एक बने ,खुद को जाने पहचाने ,सुख दुःख में भागीदार बने|सब को साथ रखने का कुछ प्रयास किया जो असफल रहा कुछ प्रयास और करूगा। मीडिया अध्ययन से प्राथमिक शिक्षा के उत्थान के प्रयास का सफर। विश्वास है कि :खुद मे ही खुदा है

HOLI..........

एक बार देखो....बार बार देखो


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