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जिस ...का नाम था नेताजी



मिर्जा गालिब (Mirza Ghalib)


हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले
मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले
हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले
हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले
खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले
कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले
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चश्म-ऐ-तर - wet eyes
खुल्द - Paradise
कूचे - street
कामत - stature
दराजी - length
तुर्रा - ornamental tassel worn in the turban
पेच-ओ-खम - curls in the hair
मनसूब - association
बादा-आशामी - having to do with drinks
तव्वको - expectation
खस्तगी - injury
खस्ता - broken/sick/injured
तेग - sword
सितम - cruelity
क़ाबे - House Of Allah In Mecca
वाइज़ - preacher

A rare photograph of 1940s
Sumitra Nandan Pant (seated), Harivansh Rai Bachchan (left) and Pt Narendra Sharma (right)

अक्षर आपकी मर्ज़ी के

इस भीड़ में मेरा भी एक पता है

मेरी फ़ोटो
पूर्वान्चल : मऊ, उत्तर प्रदेश, India
कभी एक ख्वाब देखा था हम एक बने ,खुद को जाने पहचाने ,सुख दुःख में भागीदार बने|सब को साथ रखने का कुछ प्रयास किया जो असफल रहा कुछ प्रयास और करूगा। मीडिया अध्ययन से प्राथमिक शिक्षा के उत्थान के प्रयास का सफर। विश्वास है कि :खुद मे ही खुदा है

HOLI..........

एक बार देखो....बार बार देखो


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