पुनीत कुमार राय "एह्सास अभी जिंदा है "
मेरा देश महान है
पुनीत कुमार राय "एह्सास अभी जिंदा है "
अब भी बोलो क्या बोलोगे मेरा देश महान है
नौकरशाही के दीमक से घुन गया संविधान है
अब भी बोलो क्या बोलोगे मेरा देश महान है
चमचम दिल्ली उचे होटल क्या नहीं है एक छलावा
यहाँ दो जून की रोटी को मोहताज़ किसान है
हरे खेत भरे खलियान अत्र्थासंत्री प्रधानमंत्री
फिर भी महगाई देखो चढ़ी आसमान है
अब भी बोलो क्या बोलोगे मेरा देश महान है
राजनीत की गजब कहानी जीतनी समझो उतनी अनजानी
चंद तुकडो में ही बिकता मनत्रालय और इमान है
अब भी बोलो क्या बोलोगे मेरा देश महान है
लाशो पर सेक सेक कर पकती है कुर्सी की रोटी
हिन्दू है मुस्लिम है पर नहीं एक अदद इंसान है
अब भी बोलो क्या बोलोगे मेरा देश महान है
धर्म वाद है जाति वाद है मानववाद ना कही
सेकुलर होना जहा गाली के सामान है
अब भी बोलो क्या बोलोगे मेरा देश महान है
तमगो और पैसो के खातिर मर्डर यहाँ पुलिस है करती
इन्कउन्टर के नाम पर बड़ती पुलिस की शान है
अब भी बोलो क्या बोलोगे मेरा देश महान है
पुनीत कुमार राय "एह्सास अभी जिंदा है "
देखो जरा पुरे ध्यान से
मेरी आँखों में भी क्या
दिखता है वहसी दरिंदा
जो दिख रहा, हर एक आंख में !
एक और टुटा ख्वाब
एक और टुटा ख्वाब बस कसक सी रह गयी
जाते जाते उमीदे इतना मुस्करा के कह गयी
अब तो उनकी रुसवाई पे एतबार करना सिख लो
प्यार जो हुआ है अब,तो दर्द से भी प्यार करना सिख लो
पुनीत कुमार राय
२१ वी सदी के गाधी
२१ वी सदी के गाधी
पुनीत कुमार राय
उजड़े हुए कुछ इट पत्थरो के
पास खड़े कुछ लोगो में
सफ़ेद अस्टिन वाले बड़े साहब बोले
चले आते है साले
हमें परेशान करने
मरते भी नहीं
पाश कालोनी के बदबूदार नालो
का सुन्दरीकरण चल रहा था
कुछ कपड़ो की गठरिया राखी थी
कुछ इट पत्थरो में राख सा भी था
शायद किसी का घर था और चुल्हा भी था
घर चूल्हों के साथ कुछ सपने थे
जो कोसो दूर से खीच लाये थे
दो जून की रोटी की तलाश में
यहाँ भी वही भूख थी
पर ख़ुशी थी क्यों की हाथो में काम था
सर पर छपर तो थी ही
लू के थपेड़ो से बचने को
कपडे की ही सही दीवार भी थी
झट से सब छीन जगा
और दोपाया कुत्तो का एक जोड़ा
चद मिमियाते पिल्लो के साथ
गट्ठर उठाये आगे खड़ा था
देख रहा था डब डबी आँखों से
शहर का सुंदरीकरन
तीन देश के भविष्य भी थे हैरान
परेशान तो बड़े साहब भी थे और
ए सी के तले गद्दीदार कुसरी पर
रखी वो नौकरशाह सफ़ेद तौलिया भी
जो आज गन्दी होने वाली थी
उसे भी साहब की तरह अपना काम
न करने की आदत जो पड गयी थी
पसीने से कोसो दूर
मुकुट की तरह सजी विदेशी तौलिया
अब डर था उसे, घुस की कमाई
उसे कूड़े दान में न फिकवा दे
क्यों की उसने और
चमकते हुवे टेबल ने देखा है
सुंघा है नीचे से आती
हरी पत्तियो की सौंदी महक
और देखा है
दीवार पर लटके उस हाड माश के मशीहा
के तरह मुस्कराते फोटो की बहार
कड़क दार काली कमाए के हरे नोट
इधर दो पाया फिर समेट कर चद
चिथड़े कपड़ो के ,जले बर्तन
सोच रहा था क्या मिला यहाँ
वो अधुरे सपने मुठी भर अनाज
फिर समझा कर खुद को
पापी पेट की दुहाइ देकर
चला किसी बदबूदार
नाली को सुन्दर कर घर बनाने में
जहा बड़े साहब की पहूच न हो
२१ वी सदी के गाँधी वादी
अहिनसक ,दंतहीन दो पाया कुत्ते की तरह
जो चाहकर भी झपट नही सकते!
और मजबूर है जिंदा रहने को!
आज का कलयुगी गुरुकुल
आज का कलयुगी गुरुकुल
नुकर पर एक धोती वाले ओल्ड मैन और एक न्यू फैशन में फटे जींस और खड़े बाल वाले बच्चे sorry dude से संवाद की कुछ झलकिया
दादा - जनता है बेटा हमारे गुरु जी ने हमें जीवन जीना सिखाया . तभी तो हर सुबह मैं सूर्य प्रणाम के बाद यही प्रार्थना करता हु
गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णु गुरु देवा महेश्वर
गुरु साछात्र परम ब्रम्हा तस मै श्री गुरुए नमः
पर तू तो रोज़ गुरु जी की बुराई करता है .. न जाने छात्र है आज के कैसे
बेटा-क्या दादा जब आप ओल्ड फैसन एकलव्य टाइप की बाते करते हो,
आज गुरु की तो हम वाट लगेने के मौके खोजते है कभी ,पेपर वेपर में छपता भी तो है ही
सच ही है
क्या है तू मेरे मन
क्या है तू मेरे मन
मीठा सा बहकावा
या दुःखों भरा छलवा
जहां हार भी तेरा
जीत भी तेरी
ऐसी क्यों है तेरी माया
जितना जानता हुँ तुझे
तू फिर भी अनजान क्यों है
हर शख्स़ मुझा सा
तुझसे ही परेशान क्यों है?
पुनीत कुमार राय
मिर्जा गालिब (Mirza Ghalib)
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमाँ, लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले
वो खून जो चश्म-ऐ-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
बहुत बे-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले
अगर इस तुर्रा-ए-पुरपेच-ओ-खम का पेच-ओ-खम निकले
मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले
हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा-आशामी
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले
फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम-ए-जम निकले
हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले
वो हमसे भी ज्यादा खस्ता-ए-तेग-ए-सितम निकले
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले
जरा कर जोर सिने पर कि तीर-ऐ-पुरसितम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले
खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले
कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले
कहाँ मयखाने का दरवाजा 'गालिब' और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले
पर इतना जानते हैं, कल वो जाता था के हम निकले
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चश्म-ऐ-तर - wet eyes
खुल्द - Paradise
कूचे - street
कामत - stature
दराजी - length
तुर्रा - ornamental tassel worn in the turban
पेच-ओ-खम - curls in the hair
मनसूब - association
बादा-आशामी - having to do with drinks
तव्वको - expectation
खस्तगी - injury
खस्ता - broken/sick/injured
तेग - sword
सितम - cruelity
क़ाबे - House Of Allah In Mecca
वाइज़ - preacher
चश्म-ऐ-तर - wet eyes
खुल्द - Paradise
कूचे - street
कामत - stature
दराजी - length
तुर्रा - ornamental tassel worn in the turban
पेच-ओ-खम - curls in the hair
मनसूब - association
बादा-आशामी - having to do with drinks
तव्वको - expectation
खस्तगी - injury
खस्ता - broken/sick/injured
तेग - sword
सितम - cruelity
क़ाबे - House Of Allah In Mecca
वाइज़ - preacher
A rare photograph of 1940s
Sumitra Nandan Pant (seated), Harivansh Rai Bachchan (left) and Pt Narendra Sharma (right)
कसम राम की खायेंगे …………मगर क्यों ?
कसम राम की खायेंगे …………मगर क्यों ?
पुनीत कुमार राय
वर्षो लग गए थे मुझे ये समझने में की ज़िन्दगी का मतलब है विकास . यानि पूर्व की अवस्था से नई में परिवर्तन .अब महसूस होता है की रूसो ने ठीक ही कहा था हम चारो तरफ से बन्धनों से बंधे है .कभी विकास के नाम पार तो कभी विकास की राजनीत में .मानव होना इनता बड़ा वरदान नई रह गया की , हम इस पर फक्र करे .खाश कर अपनी जान से प्यारे हिन्दुअस्तान तो बिलकुल भी नहीं .विकास के नाम पर हमें सिख दंगो को भुला देना चाहिए .बाबरी मस्जिद सॉरी ढाचा तो हम भुला ही चुके है ,गुजरात भूलने की पूरी कोसिस कर रहे है .पर क्या करे जनाब जलती हुई ट्रेन और तिलक तलवार धरी लोग ख्वाबो में भी डराने आ जाते है .
इतिहास को भूल कर लग रहा था की इस globlized सभ्यता में हम धर्म जाति से ऊपर उठा गएँ है , पर नहीं . हम तो लड़ते रहेंगे मदिर मस्जिद के नाम पर .सायद इस लिए की हम लड़ाकू जाती के है ............अरे आर्य हो हो पता करो हिंदुस्तान कैसे तुम्हारा हुवा ,अगर नमाजी हो तो मुस्लिम आक्रमण के साथ ही आये होगे जानलो , क्रिस्टियन हो तो पाक साफ नहीं तुम्हारे भाई बंधू तो माशा अल्लाह है ………. सिख है तो ..सवा लाख से एक .........याद है न . हमारे हाड़ माश में हिंसा और नफरत भरी है .
१९९२ में क्या हुवा था अयोद्या में याद नहीं रखना चाहता था .तब मैं 6 साल का था . नहीं पता है कौन सा मंदिर बनवाना है मंदिर और मस्जिद क्या होती है पर तब से एक नारा याद है कसम राम की खाएँगे हम मंदिर वही बनवायेंगे और “ कल्याण सिंह कल्याण करो मंदिर का निर्माण करो ” मेरे बाद की पीडिया जो भूल चुकी थी की बाबरी ढाचा गिरने से राम मंदिर बनाने तक कितने अब्दुल्ला और राम मोहन मारे गए , धर्म का उन्माद क्या होता है , कैसे खून का लाल रंग रज तिलक का आनंद देता है , शायद अब लिब्राहन की रिपोर्ट पर चाल रही चर्चा उन जख्मो को कुरेद कर फिर से नासूर बना देने को तैयार है .
हो भी क्यों न , कांग्रेस को UP जीतना है ,BJP को राम मंदिर का जूनून भुना कर सत्ता हथियानि है ,और SP को लोहिया के समाजवाद के नाम पर मुस्लिम राजनीत से सीटें बढ़नी है .पर हमें क्या मिला ???
क्या राम को वो जगह चाहेये भी ?
क्या पुरे देश में फइले १९९२ के दंगो में खून हमारा नहीं बहा ?
मिला क्या …………
राम को मन्दिर …नहीं उन्हें चाहिए भी नहीं
बाबरी मस्जिद – में अजान …..असंभव
फीर क्या मिला ……
मिला पुरे देश में हजारो मंदिर मस्जिद तोड़े गए ……..
विधवाओ को उनके सुहाग की लाश न देखने को मिली .
और १७ साल बाद उन वोट के सौदागर को राजनीत करने का एक नया मुद्दा मिला .
खैर हम तो आदि है कत्पुटली का डांस करने के. जिमेदार हम सब है चुनाव पर अपनी जाती के उमीदवार को वोट तो डाला , क्या सच मुच वो आपके नेता कहलाने के लायक है ?
PUNEET KUMAR RAI
09990307154